Santhoshi Matha Vratha Katha in Hindi
Santhoshi Matha Vratha Katha in Hindi
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हम सातो वारों की व्रत कथा के इस अंक में आपको शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत के बारे में जानकारी दे रहे हैं. संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. संतोष हमारे जीवन में बहुत जरूरी है. संतोष ना हो तो इंसान मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है. संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं. माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है .
संतोषी माता के व्रत की पूजन विधि सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है.
* सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें. स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
* माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें.
* माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं.
* माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें.
* माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ.
* संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें.
विशेष: इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए और ना ही खानी चाहिए.
Santhoshi Matha Vratha Katha in Hindi (व्रत कथा)
बहुत समय पहले की बात है। एक बुढि़या के सात पुत्र थे। उनमें से 6 कमाते थे और एक निकम्मा था। बुढि़या अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि वह बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था।
एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली। उसने उसी क्षण दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया। जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी। पत्नी को अंगूठी देकर वह चल पड़ा। दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली।
इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे। घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते। इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे। एक दिन लकडि़यां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि पूछी। उनसे सुने अनुसार बहू ने भी कुछ लकडि़यां बेच दीं और सवा रूपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया।
कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा दो शुक्रवार बीतते ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए। बहू ने मंदिर जाकर माता से फरियाद की कि उसके पति को वापस ला दे। उसको वरदान दे माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया। इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा।
बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगावहां बहू रोज लकडि़यां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख कहा करती थी। एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज तेरा पति लौटने वाला है। तू नदी किनारे थोड़ी लकडि़यां रख दे और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासूमां, लकडि़यां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो। बहू ने ऐसा ही किया।
उसने नदी किनारे जो लकडि़यां रखीं, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला। घर पर मां द्वारा भोजन का पूछने पर उसने मना कर दिया और अपनी पत्नी के बारे में पूछा। तभी बहू आकर आवाज लगाकर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगने लगी। बेटे के सामने सास झूठ बोलने लगी कि रोज चार बार खाती है, आज तुझे देखकर नाटक कर रही है। यह सारा दृश्य देख बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा।
खट्टा खाने की मनाही शुक्रवार आने पर पत्नी ने उद्यापन की इच्छा जताई और पति की आज्ञा पाकर अपने जेठ के लड़कों को निमंत्रण दे आई। जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टा खाने की मनाही है। उसने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि खटाई जरूर मांगना। बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर खटाई की रट लगाकर बैठ गए। ना देने पर चाची से रूपए मांगे और इमली खरीद कर खा ली। इससे संतोषी माता नाराज हो गई और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए। बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया। इसके साथ ही उसका पति राजा के यहां से छूटकर घर आ गया। अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन करने बुलाया और दक्षिणा में पैसे ना देकर एक- एक फल दिया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हुईं और जल्दी ही बहू को एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई। बहू को देखकर पूरे परिवार ने संतोषी माता का विधिवत पूजन शुरू कर दिया और अनंत सुख प्राप्त किया।
“शुक्रवार व्रत कथा”__ Shukravar Vrat Katha || Santoshi Mata Vrath Katha ||
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